परिचय
आज की दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था बड़े बदलाव से गुजर रही है। अमेरिका, जो लंबे समय से अपने डॉलर और हथियारों के दम पर सुपरपावर बना हुआ है, अब चुनौतियों से घिरता जा रहा है। खासकर ट्रंप की “टेरिफ पॉलिसी” ने अमेरिका की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
भारत और चीन ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने की बजाय सीधा जवाब दिया है। भारत ने रूस और ईरान से ऊर्जा सौदे किए, रूस से S-400 जैसे हथियार खरीदे और डिजिटल क्रांति से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया। यही वजह है कि अमेरिका की बेचैनी बढ़ रही है।
ट्रंप की टेरिफ पॉलिसी और अमेरिका का असली मकसद
डोनाल्ड ट्रंप की “America First” पॉलिसी का मकसद था अमेरिकी उत्पादों की सुरक्षा और विदेशी आयात पर रोक लगाना।
- चीन और भारत से आने वाले सामान पर भारी टेरिफ लगाया गया।
- उम्मीद थी कि इससे अमेरिकी कंपनियां मजबूत होंगी।
लेकिन नतीजे उल्टे आए।
- चीन ने बराबरी का पलटवार किया।
- भारत ने रूस और ईरान जैसे विकल्प खोज लिए।
👉 इससे साफ हुआ कि अब दुनिया अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर नहीं है।
हथियारों के खेल में भारत की चतुराई
अमेरिका चाहता था कि भारत F-35 फाइटर जेट खरीदे। लेकिन इनमें अमेरिका का पूरा कंट्रोल रहता है।
भारत ने यह डील ठुकराकर रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम ले लिया।
- S-400 भारत को स्वतंत्र सुरक्षा देता है।
- अमेरिका का अरबों डॉलर का हथियार बाजार कमजोर पड़ गया।
👉 यही कारण है कि अमेरिका भारत की रणनीति से नाराज है।
डॉलर की पकड़ ढीली होने का डर
अमेरिका की असली ताकत उसका डॉलर है।
- पूरी दुनिया का तेल और सोने का व्यापार डॉलर में होता है।
- देशों का सोना अमेरिका में जमा है।
लेकिन अब BRICS देश नई करेंसी R5 पर काम कर रहे हैं।
- भारत और रूस रुपये-रूबल में सौदे कर रहे हैं।
- अगर R5 सफल हुआ तो डॉलर की पकड़ कमजोर हो जाएगी।
चीन और Rare Earth की रणनीति
चीन Rare Earth मेटल्स का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिनकी जरूरत मोबाइल, लैपटॉप और सैन्य उपकरणों में होती है।
- अमेरिका ने चीन पर टेरिफ लगाया तो चीन ने पलटवार किया।
- चीन ने Rare Earth Export रोकने की धमकी दी।
- अब चीन भारत को Rare Earth सप्लाई करने को तैयार है।
👉 इससे भारत भविष्य में सेमीकंडक्टर और माइक्रोचिप्स का हब बन सकता है।
भारत की आत्मनिर्भरता – अमेरिका को सबसे बड़ा खतरा
भारत ने हाल के वर्षों में डिजिटल क्रांति से दुनिया को चौंका दिया है।
- UPI ने डिजिटल पेमेंट सिस्टम बदल दिया।
- DigiLocker और DigiYatra जैसी सेवाओं ने भारत को आगे बढ़ाया।
- भारत अब सोशल मीडिया, चिप मैन्युफैक्चरिंग और एविएशन इंडस्ट्री में भी आत्मनिर्भर बनने की ओर है।
👉 यह सब अमेरिका की नींद उड़ाने के लिए काफी है।
BRICS का उभार और अमेरिका की बेचैनी
BRICS देशों ने अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे दी है।
- BRICS करेंसी से डॉलर का वर्चस्व खतरे में है।
- रूस-भारत रुपये-रूबल में व्यापार कर रहे हैं।
- चीन और भारत Rare Earth और टेक्नोलॉजी सेक्टर को कंट्रोल करने की स्थिति में हैं।
👉 यही कारण है कि अमेरिका लगातार दबाव और पाबंदी की राजनीति कर रहा है।
क्यों पगला रहा है अमेरिका?
- भारत दबाव झेलने की बजाय विकल्प खोज रहा है।
- चीन बराबरी से पलटवार कर रहा है।
- डॉलर की पकड़ कमजोर हो रही है।
- BRICS देश अमेरिकी सिस्टम को चुनौती दे रहे हैं।
👉 अमेरिका की यही बेचैनी आज पूरी दुनिया देख रही है।
निष्कर्ष
ट्रंप की टेरिफ पॉलिसी अमेरिका के लिए उलटी साबित हो रही है। भारत और चीन जैसे देश आत्मनिर्भरता और नई रणनीति से अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं।
👉 आने वाले समय में भारत की ताकत और BRICS की मजबूती अमेरिका के लिए सबसे बड़ी परेशानी साबित होगी।
Q1. ट्रंप की टेरिफ पॉलिसी क्या है?
Ans: यह “America First” पॉलिसी है जिसके तहत अमेरिका ने विदेशी सामानों पर ज्यादा टेरिफ लगाया ताकि अमेरिकी कंपनियों को बढ़ावा मिले।
Q2. भारत पर अमेरिकी टेरिफ का क्या असर हुआ?
Ans: भारत ने अमेरिका के दबाव के बजाय रूस, ईरान और वेनेजुएला से सौदे कर लिए। इस वजह से असर कम पड़ा।
Q3. BRICS करेंसी (R5) क्या है?
Ans: BRICS देशों की नई करेंसी R5 डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए बनाई जा रही है।
Q4. डॉलर की पकड़ क्यों कमजोर हो रही है?
Ans: रूस-भारत जैसे देश अपनी करेंसी में व्यापार कर रहे हैं और BRICS नई करेंसी पर काम कर रहा है।
Q5. Rare Earth पर चीन का क्या रोल है?
Ans: Rare Earth मेटल्स का सबसे बड़ा उत्पादन चीन करता है। सप्लाई रोकने से अमेरिका की टेक कंपनियों पर असर पड़ सकता है।
Q6. भारत की आत्मनिर्भरता अमेरिका को क्यों खटक रही है?
Ans: भारत ने डिजिटल टेक्नोलॉजी और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाई है। अगर यह और आगे बढ़ी तो अमेरिकी दबाव खत्म हो जाएगा।